कोई चलता पद चिन्हों पर , कोई पद चिन्ह बनाता है। बस वही सूरमा वीर पुरुष , दुनिया में पूजा जाता है। । सद्गुरु भगवान

 

पिछले अस्वमेघ महायज्ञ में भगवान केदारनाथ का दृश्य 

आचार्य जैनेंद्र

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मां सरयु की तट पर कितने शहर बसे कितने जल समाधि ले लिए,पर मां अपने लाडले राम को अपने आँचल में आज तक बडे ममता से आज तक सभांले हुए है ,मां के रेतीले तट आज भी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के पदचिनहो की गवाही कर रहै है ,पीढ़ीयां आयेगीं और जायेगीं पर राम की मर्यादा सदा से कालजयी रही है और रहेगीं ,मां का यह पावन तट हमेशा सबको पावन करता है ,आज दोहरीघाट नगर का मां सरयु का यह तट इस कालखंड का सबसे बडे विशाल अश्वमेघ महायज्ञ का साक्षी बन रहा है वैसे तो यह नगर हमेशा दोहरीयो के मिलन के लिए विख्यात है ,पर जब यह तट अतीत के पन्नो में पलटा जायेगा तो पुज्य श्रीरामशिला चक्रवर्ती द्वारा रचित यज्ञो को पढा और सुना जायेगा ,जब प्रथम अश्वमेघ महायज्ञ हुआ था ,तो मानो नगर के जुबां जुबा पर यज्ञ की चर्चा था ,चाय के दुकानो से शासन प्रशासन के लिए कौतुहल का विषय था ,तब से लेकर आजतक मां सरयु ने अपने लाडले श्री पुज्य श्री रामशिला से अनेको यज्ञ सम्पन्न कराये ,और भी आगे करायेगीं
कोई चलता पद चिन्हों पर , कोई पद चिन्ह बनाता है।
बस वही सूरमा वीर पुरुष , दुनिया में पूजा जाता है। ।