दोहरीघाट-मऊ
पचंम अश्वमेघ महायज्ञ का चौथा दिन
प्रातःकालीन प्रवचन
पुज्य श्री सद्गुरु भगवान ने ईश्वर व्यापकता पर बोलते हुए कहे कि
ईश्वर है कहां है , क्या मंदिर में है क्या मस्जिद में है तो छत पर क्यो नही है,
"माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर"
ईश्वर न मंदिर में है, न मसजिद में न काबा में हैं, न कैलाश आदि तीर्थ यात्रा में वह न कर्म करने में मिलता है, न योग साधना से, न वैरागी बनने से ये सब उपरी दिखावे है, ढोंग हैं।
पूरे संसार में हम सभी अपने-अपने ईश्वर को अनेकानेक रूपों में पूजते आ रहे हैं। यह बात तो निश्चित है कि प्रत्येक धर्म व धार्मिक ग्रंथ एक ही बात दोहराते हैं कि भलाई के पथ पर चलें, गुणवान व्यक्ति बनें, पर हममें से कितने इन बातों का अनुसरण कर पाते हैं? जाने या अनजाने ऐसा क्यों है कि ईश्वर के अस्तित्व के आभास वह ईश्वर हमारे अंतर्मन में भी है और बाहर भी। जो सब में समाया है, कण-कण में व्याप्त है। सदगुरू राह दिखाते है ,ईश्वर के अस्तित्व का सही दर्शन सद्गुरु भगवान ही करा सकते है। अगर सदगुरूदेव भगवान के उपर विश्वास है तो जीवन की नैया पार लगा सकते है।
अश्वमेघ महायज्ञ में परम पुज्य श्री सदगुरूदेव भगवान के साथ ,अवधुत अखिलेशवरा नन्द, राष्ट्रीय महासचिव-श्री धर्मानन्द पाण्डेय,आचार्य सुकृत जी महाराज, आचार्य अत्रि, आचार्य जोगेश्वर जी , आचार्य-लक्ष्मीकांत श्रीवास्तव,आचार्य अवधेशानन्द जी महाराज, मीडिया प्रभारी -आचार्य विश्वामित्र, मीडिया प्रभारी -आचार्य अरपितेशवरा नन्द, सोशल मीडिया टीम -आचार्य दिव्यानन्द, आचार्य जितेंद्र जी आचार्य-तुलसी जी ,राजकुमार, आचार्य अटल जोगेश्वर जैसे सभी वरिष्ठ आचार्य इस कार्यक्रम में सहभागी रहै।